बचपन के दोस्त
यार, ये जो बचपन के जो दोस्त होते हैं, बनाए नहीं जाते। ये तो वो फरिश्ते है, जो तुम्हारे साथ ही है आते। तुमको तबसे जानते हैं, जब तुम्हें बोलना भी नहीं आता था, तुम्हारा हाथ तब थामा था, जब चलना भी न आता था। खेलना उनहोने जरूर सिखाया था तुम्हें, लड़ना, जगदना भी उन्हीं के साथ। आज जब जिंदगी के खेल में उलज गया, थाम लिया उनहोने ही मेरा हाथ। ये जो बचपन के दोस्त होते हैं, ये पगले पीछे भी नहीं छोड़ते। जब तक तुम्हारे आंसू न निकल जाए, ये साले हंसाना भी नहीं छोड़ते। ये पगले जब भी मिलते हैं, लगता है कल ही तो मिले थे, उनके साथ ऐसे ही जीलो यारों, पता नहीं अगली बार फिर कब मिलेंगे। जब भी मिलते हैं, बातें बचपन की जरूर निकलेगी। वो किस्सा बस निकले, आंखो में नमी पर हंसी सबकी छूटेगी। आस पास वाले देख चौक जाते हैं, सोचते हैं ऐसे लोग कहां से आते हैं। उनकी खैर मुझे क्या फिकर, मेरे जो यार मेरे साथ है। उमर बीती, कारवां चला, अब प्रैक्टिकल होने लगे हैं सब, सब में हम कहां आते हैं खैर, हम तो खुद दो साल की प्लानिंग के बाद मिले हैं अब! इनके साथ जब बैठो, अपने आपको पा लेता हूं, यार इनको जब भी मिलता हूं, फिर...